पुरनपनिया पगडंडी पर कहराते रही निशा, 7 किमी खटिया के सहारे सीएचसी पहुंची गर्भवती महिला

© हाथी का दांत बनकर रह गया डाडी घाघर उप स्वास्थ्य केंद्र
© जंगल में बना स्वास्थ्य केंद्र रहता है बंद, पुरनपनिया में नहीं है सड़क
© घंटो जद्दोजहद के बाद गर्भवती पहुंची सीएचसी, जच्चा बच्चा स्वस्थ
•अभिषेक कुमार
इचाक। प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र डाडी घाघर पंचायत अंतर्गत पुरनपनिया गांव में रविवार को मार्मिक दृश्य सरकार के खोखले दावे का पोल खोल दी। जहां पगडंडी के सहारे खटिया पर गर्भवती महिला निशा कुमारी को कराहते हुए फुफंदी गांव तक लाया गया जिसके बाद एंबुलेंस से इचाक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया गया। बताते चलें की निशा अपनी बहन के घर पुरनपनिया आई हुई थी। गर्भवती महिला को शनिवार के सुबह से ही दर्द उठा था। लेकिन गांव में कोई पुरुष नहीं रहने के कारण समय से अस्पताल नही पहुंचाया गया। जिसके बाद रविवार को तेज दर्द होने पर परिजन प्रसूति के लिए जर्जर पगडंडी पर सात किलोमीटर महिला को खटिया में लेकर पैदल चलने पर विवश थे। हालांकि काफी तकलीफों को पार करते हुए गर्भवती महिला को इचाक सामुदायिक स्वास्थ्य लाया गया। जहां उसने स्वस्थ्य बच्चा को जन्म दिया।फिलहाल जच्चा बच्चा स्वस्थ्य है। पुरनपनिया एक ऐसा गांव है जहां सैकड़ों घर आदिवासियों का बसेरा है। जहां आज भी लोग सड़क, बिजली और पानी के लिए तरसते है। जहां एक ओर सरकार विकास की गाथा गाती है वही दूसरी ओर ऐसा मार्मिक दृश्य सच्चाई को बताने में कोई कसर नहीं छोड़ा। ऐसे बेबस ग्रामीणों की सुध लेने वाला न कोई जनप्रतिनिधि है और ना ही प्रशासन। आजादी के कई सदी बीत जाने के बाद भी इस गांव के ग्रामीण सरकारी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। अब तो सरकार और प्रशासन से ग्रामीण उम्मीद भी तोड़ चुके हैं कि इस गांव में कभी सवेरा होगा और कोई सुविधा मिल पाएगा। क्योंकि स्थानीय विधायक, सांसद, झारखंड के कई मंत्री और उपायुक्त के पास गांव में सड़क, बिजली, अस्पताल, मूल सुविधा को लेकर आवेदन और ज्ञापन देकर जागरूक ग्रामीण चक्कर काट कर थक हार चुके हैं, क्योंकि उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं मिला। डाढ़ी घागर पंचायत के ग्रामीणों ने पिछले चुनाव के दौरान मतदान नहीं करने की घोषणा भी की थी लेकिन प्रशासनिक लॉलीपॉप ने ग्रामीणों साथ समझौता कर मत के अधिकार को अपनाने की बात कही थी।
इसके बावजूद आज तक उस गांव में बेबस ग्रामीणों का हाल जानने पदाधिकारियों की एक गाड़ी भी नहीं गई है। सरकार की निगाहों में डाडी घाघर के जंगल में एक उप स्वास्थ्य केंद्र खोला गया है, जो हाथी का दांत साबित हो रहा। ग्रामीण कहते है की स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ ठीकेदारी के उद्देश्य से बनाया गया। जहा न कोई स्वास्थ्य कर्मी रहते है और ना ही चिकित्सक। गांव से उल्टा जंगल रास्ते कोसो दूर उप स्वास्थ्य केंद्र बना है जो किसी काम का नही।
समाजसेवी सह भाजपा नेता रमेश कुमार हेम्ब्रोम ने कहा कि जहां झारखंड में एक ओर भगवान बिरसा मुण्डा का शहादत दिवस मनाया जाता है, वही दूसरी ओर आदिवासियों के बीच ऐसी लागतर घटना देखने को मिल रही है।लगता है कि इन महापुरुषों का सपना एवं शहादत भी अधूरा साबित होता दिख रहा है। लगातार इस क्षेत्र के विकास और घटनाओं को लेकर आवाज को उठाते आया हूँ लेकिन कोई फरियाद सुनने वाला नहीं। डाड़ीघाघर पंचायत के भौगोलिक स्थिति को देखते हुए ग्राम फूफन्दी मे उप स्वास्थ्य केंद्र अविलम्ब बनाने की मांग किया है।
•क्या कहते है मुखिया
डाडी घाघर पंचायत के मुखिया नन्द किशोर उर्फ नंदू मेहता ने बताया की जंगलों के बीच बसा यह गांव आज भी मूलभूत सुविधाएं से वंचित है, क्योंकि विकास योजनाओं के लिए वन विभाग चुनौती के रूप में साबित हो रही। कई बार विभाग को इसकी जानकारी दी गई लेकिन कोई सकारात्मक पहल करने को तैयार नहीं है। वन क्षेत्र होने के कारण योजनाओं पर काम करने के लिए वन विभाग की अनुमति नहीं मिल पाता जिसका खामियाजा हम ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। मुखिया द्वारा पुन: मांग किया गया है की सड़क निर्माण हेतु वन विभाग द्वारा अनापति पत्र निर्गत किया जाय ताकि इस गांव को विकास कार्यों से जोड़ा जा सके।

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