इचाक में धूमधाम से मना महाशिवरात्रि, भक्ति में डूबे श्रद्धालु

अभिषेक कुमार
इचाक
मंदिरों की नगरी इचाक में सैकड़ों शिवालय हैं। सभी मंदिरों की अपनी अपनी महत्ता है। धार्मिक दृष्टिकोण से इचाक हमेशा भक्ति भाव में मग्न दिखा है। इसी बीच मंगलवार को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर पूरा क्षेत्र भक्ति मय दिखा। सुबह से ही शिवालयों में भक्तों का ताता लगने लगा। जहां बेलपत्र, जल, दूध और प्रसाद लेकर लोग अपनी मनोकामना को लेकर पूरे भक्ति भाव से पूजा अर्चना में लीन दिखे। प्रखंड के प्रसिद्ध बुढ़िया माता मंदिर, बनसतांड सिद्धि मंदिर,भगवती मठ, गुंजेशवर मंदिर, थानेश्वर मंदिर, कुतुमसुकरी शिवालय, बाबू पोखर शिव मंदिर, परासी शिवालय, मा चमपेश्वरी मंदिर, डुमरान शिवालय, इचाक मोड़, बोंगा, धरमु समेत विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा थी। मंदिरों को लाइट बत्ती से सजाया गया तथा सुबह से ही मंदिर परिसर की साफ-सफाई कर आकर्षित व मनमोहित धार्मिक मनोरम की तस्वीर बनाने का प्रयास लोगों द्वारा किया गया।
भक्तों ने पूरे श्रद्धा के साथ मंदिरों में पूजा अर्चना करते दिखे। पूरा क्षेत्र भक्ति में मे लीन था। मंदिरों के पास से महामृत्युंजय मंत्र, वो भोले, भोले बाबा के रोमांचित गीत भजन से लोग मंत्रमुग्ध थे। कहीं महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो रहा था तो कहीं अपनी मनोकामना को लेकर फल दूध, भांग- धतूरा चढ़ाया जा रहा था। मंदिरों का कोना-कोना से शिव भक्ति के भाव दिख रहे थे। सनातन प्रेमियों के इस श्रद्धा से भावी पीढ़ी के बीच सामाजिक समरसता को लेकर लोगों में धर्म के प्रति चेतना और जागरूकता देखा गया। महिला पुरुष व बच्चे के माथे पर चंदन का आकर्षित तिलक शिव भक्ति का संदेश दे रहे थे।
भगवती मठ, थानेश्वर मंदिर, बनसटांड, कुटुम सुकरी शिवालय समेत कई स्थानों पर महाप्रसाद के रूप में खीर बांटा गया तथा भोग भंडारा का आयोजन किया गया। पूरी रात कीर्तन भजन से क्षेत्र गूंजते रहा। बताते चलें कि महाशिवरात्रि की विशेष अवधारणा है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है।
आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। इचाक में कई ऐसे शिवालय हैं जहां दो दो शिवलिंग स्थापित है।

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