भारतीय धर्म और संस्कृति के लिए आज का दिन बहुत है खास

विश्व में भारतीय धर्म और संस्कृति का छाप
शिकागो में स्वामी विवेकानंद: 11 सितंबर 1893 को शिकागो में जब आयोजित विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने दुनिया के सामने भारतीय संस्कृति और दर्शन की विशिष्टता रखते हुए ऐसी छाप छोड़ी, जिसके बाद पूरा विश्व भारतीय संस्कृति को लोहा माना। उन्होंने अपने व्याख्यान में धर्म और राष्ट्र की व्याख्या करते हुए कहा ‘मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से संबंध रखता हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया है। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे राष्ट्र से हूं, जिसने सभी धर्म और सभी देशों के शरणार्थियों को शरण दी।’ 11 सितंबर से 27 सितंबर तक 17 दिनों चलने वाले विश्व धर्म महासभा में गेरुआ वस्त्रधारी 25 वर्षीय संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने छह व्याख्यान दिये। उनमें शून्य पर दिया गया उनका व्याख्यान सुनकर पूरी दुनिया हैरान थी। उन्होंने धर्म के असली स्वरूप को पहचानने की जरूरत बताते हुए आगाह किया कि धर्म के नाम पर दुनिया में सबसे अधिक रक्तपात हुआ। कट्टरता और सांप्रदायिकता को उन्होंने मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन बताया। उन्होंने कह सहनशीलता का विचार पूरब के देशों से आया और दुनिया में फैला। उन्होंने धर्मसभा की महत्ता बताते हुए गीता के उपदेश का उल्लेख किया- जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां उठाते हैं लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं। सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए वे कुछ सप्ताह पहले ही वहां पहुंच गए थे। 31 मई 1893 को मुंबई से विदेश यात्रा की शुरुआत करते हुए वे जापान पहुंचे। जापान में नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो का दौरा किया। इसके बाद चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो शहर पहुंचे। अमेरिका की सर्दी सहन करने के लिए स्वामी जी के पास पर्याप्त कपड़े नहीं थे और न ही सुविधाएं जुटाने के लिए धनराशि। काफी कठिन परिस्थितियों में उन्होंने वह समय गुजारा लेकिन जैसे ही उन्होंने धर्मसभा में अपने विचार रखे, सभी को अहसास हो गया कि विचार के रूप में भारत के पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है।

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