पिता अपने बच्चों के जीवन पथ का हौसला होता हैं 


फादर्स-डे पर पिता की विशेष रचना


अभिषेक कुमार 



आज फादर्स-डेे हैं जो पिता के सम्मान में मनाया जाता है।
मुझे रख दिया छांव में, खुद जलते रहे धूप में,
मैंने देखा है ऐसा एक फरिश्ता, अपने पिता के रूप में।
बेमतलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शान है,
किसी शख्स के वजूद की पिता ही पहली पहचान है।



फादर्स डे पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व हैं इसमें समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। एक तरफ जहां मां हमें प्यार और ममता देती हैं वहीं पिता आपके जीवन की मजबूत नींव रखते हैं। अपने जीवन के हर दौर में संघर्ष और मेहनत से मुकाम हासिल करना पिता सिखाते हैं। पिता ही एक ऐसे शख्सियत होते हैं जो दिन और रात काम कर अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा करते हैं। आज उन्हीं पिता को सम्मान देने का दिन हैं। हर बच्चे के लिए उनके माता-पिता सबसे ऊपर होते हैं। मां अपने बच्चों की अधिक चहेती होती हैं और पिता थोड़ा कम। लेकिन ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि पिता अपने काम और बच्चों के परवरिश तथा उज्जवल भविष्य बनाने
के कारण अधिक समय बाहर बिताते हैं या कामों में व्यस्त होते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने बच्चों से कम प्यार करते हैं या बच्चों से उनका लगाव कम है। कई बार बच्चे भी अपने काम में व्यस्त होते हैं जिसके कारण वह अपने माता-पिता को कम समय दे पाते हैं। ऐसे में उनके पास एक खास दिन होता है जब वह अपने पिता को खुशी दे सकते हैं और उन्हें अच्छा महसूस करवा सकते हैं। फादर्स डे के मौके पर हर बच्चा अपने पिता को उनके खास होने के बारे में बता सकता है। पिता का प्यार और उसके त्याग का मोल इस दुनिया में सबसे अनमोल है। जितना प्यार एक मां अपने बच्चे से करती है उतना ही प्यार पिता भी करते हैं। पिता एक निःस्वार्थ भावना की मूर्ति हैं। लेकिन समय के साथ लोग इस समर्पण और प्रेम को भूलने लगते हैं। यह पितृ दिवस उन्हीं लोगों को पिता का प्रेम और उसके त्याग की भावना को याद दिलाती हैं।
मां-बाप से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं होता है। क्योंकि उनके जैसा निस्वार्थ प्रेम और कोई नहीं दे सकता। अगर मां हमारे लिए अपनी चिंता आंसुओं में जाहिर कर देती है लेकिन पिता मन ही मन रोता है। एक पिता सूरज की तरह होता है। वो गर्म जरूर होता है पर यदि न हो तो अंधेरा छा जाता है। जीवन में कभी भी कोई कष्ट न मिले ऐसी व्यवस्था एक पिता ही करता है। जिस प्रकार एक कुम्हार के थाप से मिट्टी भी सुंदर घड़े का रूप ले लेता है ठीक उसी प्रकार पिता के डांट फटकर से ही तो संस्कारी बच्चों का निर्माण होता है। हर बच्चों के जीवन में रंग भरने का काम पिता ही करते हैं, हर कदम पर हौसला बढ़ाते हैं। जीवन के सफलता के पीछे पिता का अहम भूमिका होता हैं। लेकिन कई ऐसे बच्चे हैं जो अपने पिता के निस्वार्थ भाव और समर्पण को भूल जाते है और उन्के बुढ़ापे में वृद्धाआश्रम जैसे जगह छोड़ आते हैं। बच्चों को अपने जीवन पथ पर कभी भी पिता की भूमिका को भुलाया नही जा सकता।

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