बनसटाॅड़ शमशान घाट के बगल का शिवालय सिद्धि मंदिर की अलौकिक शक्ति

 बनसटाॅड़ सिद्धि मंदिर का वर्षों पुराना है इतिहास



श्रावण माह में अलौकिक है बनसटाॅड़ मंदिर  की महिमा




अभिषेक कुमार

इचाक

मंदिरों की नगरी इचाक में वैसे तो सैकड़ों शिवालय हैं. लेकिन प्रखंड के कुटुमसुकरी में स्थित बनसटाॅड़  शिवालय मंदिर का विशेष ही महत्ता है। बुढ़िया माता मंदिर के दक्षिण दिशा की ओर स्थित बनसटाॅड़ का सिद्धि शिव मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है। जानकार बताते हैं कि राजा शिवनाथ सिंह के समय 1778 ईस्वी में इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कर शिव जी को प्रतिष्यत किया गया था। इस मंदिर में जो भी मन्नत व मुराद मांगी जाती है भगवान भोलेनाथ उसे पूरा करते हैं। इसलिए इस मंदिर में लोग दूर-दूर से मन्नतें मांगने को आते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि राजा लक्ष्मी नारायण सिंह को जब पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी तब उन्होंने बनसटाॅड़ शिवालय में जाकर मन्नते मांगा था। उनका वंश नहीं चलने के कारण थक हार कर वे बनसटाॅड़ के शिव मंदिर पर आश्रित होकर मन्नत मांग कर पदमा चले गए थे। जिसके कुछ महीनों बाद ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। बनसटाॅड़ मंदिर के आशीर्वाद से उनके घर कामाख्या नारायण सिंह पैदा हुए थे। वर्षों पुराना यह मंदिर क्षेत्र का प्रख्यात मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां ज्योतिर्लिंग और शंकर द्वादश दो लिंग स्थापित हैं। जिसे महाकाल और शंकर के नाम से जाना जाता है। 




बनसतांड में भगवान भोलेनाथ अपने पूरे परिवार समेत स्थापित है. जिसमें बीरभद्र,  माता पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदेश्वर और नागदेव समेत पूरे परिवार एक साथ मंदिर में विराजमान हैं। इस मंदिर के पूरब कोण की ओर श्मशान घाट है। श्मशान घाट के समीप शिव जी का निवास करने के कारण इसे सिद्धि मंदिर माना जाता है। यहां दूरदराज से भी लोग सिद्धि करने आते हैं। मंदिर के बाहर ही नंदेश्वर महाराज स्थापित है। पुजारी का कहना है कि इनके पूर्वज पहले नंदेश्वर का पूजा पाठ करते थे तभी शिवालय घुसते थे। वर्तमान पुजारी उमेश पांडे बताते हैं कि चार पीढ़ियों के समय से बनसटाॅड़ में पूजा करते चले आ रहे हैं। इनके पूर्वज पहले पत्थलगड़ा में स्थापित लोबीया के पुजारी थे।इनके परदादा अमलोल पंडा के समय से ही इनके पूर्वज बनसटाॅड़ वाले मंदिर में मुख्य पुजारी के रूप में पूजा कराते आ रहे हैं। इनके पिता भूलन पंडित ने भी वर्षों तक इस मंदिर की सेवा में लीन रहे। जिसके बाद वर्तमान में उमेश पांडे और उनके पुत्र पप्पू पांडे मंदिर की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। पुजारी उमेश पांडे का कहना है कि श्रावण माह में इस मंदिर की अलौकिक शक्ति और अधिक बढ़ जाती है तथा इस समय वह पूजा करने वाले लोगो की हर मनोकामना पूर्ण होती है। श्रावण मास में इस मंदिर में विशेष रुप से रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय का जाप किया जाता है। यह जाप से लोगों की हर मनोकामना पूर्ण होती है तथा कई तरह के नकारात्मक दोष से मुक्ति मिलती हैं। नागपंचमी में इस मंदिर में दूध लावा चढ़ाकर शिवजी को प्रसन्न किया जाता है और अपनी मुरादे पूरी की जाती है। श्रावण माह भर इस मंदिर में प्रत्येक सोमवारी को विशेष रूप से श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। भक्तों की भीड़ पुरे श्रावण मास तक चलते रहती हैं। दूर दराज से लोग मनोकामना की पूर्ति के लिए  मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर की पहचान सिद्धि मंदिर के रूप में की जाती है।

No comments:

Post a Comment

वन विभाग से नाराज ग्रामीणों ने वोट बहिष्कार का दिया आवेदन

इचाक प्रखंड के डाढ़ा पंचायत अंतर्गत मड़पा गांव के ग्रामीणों ने वन विभाग से नाराज हो कर वोट बहिष्कार का ऐलान किया। जिस बाबत उपायुक्त हजारी...