माँ से बड़ा कोई नही कोरोना योद्धा

माताएं कोरोना योद्धा से कम नहीं, जीवन का मतलब ही माॅ

मातृ दिवस पर माताओं की भूमिका

अभिषेक कुमार

कोविड-19 का दौर चल रहा है, जिसकी वजह से लाॅक डाउन की स्थिति बनी हुई है। लोग अपने अपने घरों में हैं। घर पर रहकर ही लोग कामों को निपटा रहे हैं। लेकिन घर पर रहकर काम करने वाली माताओं की जिम्मेवारियां बढ़ गयी है। वो भी किसी कोरोना वारियर से कम नहीं। घर पर रहकर किसी कोरोना योद्धा की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। हर दिन घरों को डीप क्लीनिंग की शख्त आवश्यकता है। आमतौर पर जितनी साफ सफाई रखी जाती हैं उससे कहीं ज्यादा घरों को हाइजिंक रखने की आवश्यकता है। इस दौरान माताए मेहनत कर अपना फर्ज निभा रही हैं। कोरोना से निपटने के लिए सबसे जरूरी है ह्यूमिनिटी पावर को बढ़ाना। ऐसे में वैसा ही भोजन करना जो सबसे पौष्टिक हो और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए। लिहाजा किचन में भी माताओं की जिम्मेदारियां बढ़ गयी है। यहीं नही घर पर अगर बुजुर्ग व बच्चे हैं तो उनकी विशेष देखभाल आज के समय में हो गयी है। ऐसे में माताए कोरोना योद्धा से कम नहीं। मानसिक संतुलन, घर में खुशनुमा माहौल रखना सबसे जरूरी है। जहाँ माॅ सबसे सफल हैं। कोई भी चैलेंज को माताओं के सामने घुटने टेकने ही पड़ते हैं।

*मातृ दिवस पर माताओं की विशेष संदेश*


  1. शिक्षिका रीता देवी:     संसार में सबसे सर्वोच्च स्थान माॅ को दिया गया है। मातृ दिवस तो हर दिन होता हैं। बच्चों के जन्म से लेकर जीवन के अंतिम क्षणों तक माॅ की ममता ही बच्चों में सकारात्मक ऊर्जा भरती है। बच्चों की विपती पर माॅ ही सबसे बड़ी ढ़ाल होती हैं। बच्चों की खुशियाँ से ही हर माता खुश होती हैं।



बीपीओ स्वाति वर्मा:   दफ्तर और उसके बाद घर संभालना किसी भी माताओं के लिए सबसे बड़ा चैलेंज हैं। सभी माताओं को मैं नमन् करतीं हूँ। श्रृष्टि में ममता, प्यार, सद्भाव जैसे वातावरण एक माॅ से ही मिलता है। बच्चों के जीवन पथ पर माॅ सबसे बड़ी ताकत होती हैं। माॅ शब्द ही जीवन हैं क्योंकि इसके उच्चारण मात्र से ही स्वयं लब्ज़ खुलता है। हर एक माॅ एक योद्धा की तरह परिवार को संभालती हैं।


एएनएम ज्योति कुमारी:   कोरोना का दौर चल रहा है। ऐसे में अस्पताल में रहकर फिर बच्चा को संभालना बहुत बड़ी चुनौती लगती हैं। जबसे इस पद पर कार्य कर रहीं हूँ तब से कई माताओं की पीड़ा देखी हूँ। बच्चा के जन्म समय माॅ को होने वाली दर्द अगर हर बच्चों को समझ में आता तो कोई भी माॅ  को वृद्धावस्था में वृद्धाआश्रम जैसे जगह जाने की नौबत नही आतीं।

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