अभिषेक कुमार
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आज पुुुुरा देश कोरोना वायरस जैसे महामारी से जुझ रहा है। इस दौरान सभी को संयम और सुरक्षित रहने की सख्त आवश्यकता है। एसे में घर
से ना निकले तथा आपने हाथों को हमेशा हैण्ड वास करते रहें। मास्क, सेनीटाइजर, गर्म पानी का इस्तेमाल करें तथा सफाई पर भी ध्यान दे। इस दौरान आइसोलेशन से संबंधित कई लोगो ने सवाल पुुुछा। जिसे चिकित्सकों के मााध्यम से जानकारी हासिल की गयी। इस जानकारी को साझा करते हैं पाठको के बीच।
कोरोना से पीड़ित मरीजों को क्वेरेंटाइन आइसोलेशन में रखा जाता है। आइसोलेशन वार्ड में कोई भी बगैर एन-95 रेस्पिरेटर मास्क लगाए बिना प्रवेश नहीं कर सकता। एन-95 एक खास तरह का मास्क है जो हवा में पाए जाने वाले 95 प्रतिशत बैक्टीरिया और वायरस को फिल्टर करता है। आइसोलेशन कमरा को नाकारात्मक प्रेशर रूम समझा जाता है, जहां मरीजों को संभालने के लिए किसी भी किस्म की अफरातफरी न हो और पर्याप्त स्टाफ हो। इनका कमरा हमेशा बंद होता हैं। यहां की हवा बाहर नहीं जा सकती है। यहां तक कि आसपास के कमरों या कॉरिडोर में भी इस कमरे की हवा नहीं फैल सकती है। मरीजों की देखरेख करने वाला अस्पताल स्टाफ मास्क, गाउन, और आंखों पर खास किस्म का चश्मा पहनता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके।
रेस्पिरेटरी डिसीज से जूझ रहे हर मरीज को इस रूम में नहीं रखा जाता, बल्कि ये देखा जाता है कि मरीज के लक्षण कितने गंभीर हैं और वो सोशली कितना एक्टिव है। अगर मरीज लगातार खांस या छींक रहा है और तेज बुखार है तो उसे आइसोलेशन में तुरंत रखा जाता है। जब तक ये लक्षण सामने नहीं आते हैं। उसे पैरासीटामोल देकर घर पर ही सेल्फ क्वेरेंटाइन में रहने को कहा जाता है। इस दौरान मरीज घर पर रहता है लेकिन सबसे अलग-थलग रहता है। यहां तक कि उसका टॉयलेट, तौलिया, खाने के बर्तन, कंघी और दूसरी टॉयलेटरीज भी अलग कर दी जाती हैं।
क्वेरेंटाइन और आइसोलेशन के बीच अंतर है
क्वेरेंटाइन का मतलब है, किसी ऐसे व्यक्ति को अलग-थलग रखा जाना जो किसी कोरोना मरीज के संपर्क में आ चुका हो या फिर ऐसी किसी जगह गया हो, जहां कोरोना फैल चुका है। क्वेरेंटाइन समय के दौरान मरीज घर पर अलग रहता है और अपने लक्षणों पर गौर करता है। अगर सर्दी, खांसी, बुखार जैसे लक्षण दिखाई दें तो अस्पताल में जांच होती है और फिर उसे आइसोलेशन में रख दिया जाता है। जहां पूरा इलाज तब तक चलता है जब तक कि रिपोर्ट निगेटिव न आ जाए।